यू हीं नहीं किसान अपने हक़ के लिए इतनी हिम्मत जुटा पाते है, आखिर किसी ने तो उनकी इस हिम्मत में चार चाँद लगाए होंगे, जहाँ से किसानों को अपनी बात रखने के लिए आंदोलन रुपी नया तरीका मिला, तो आज हम आपको बताएंगे कांग्रेस के उस दिग्गज नेता के बारे जिन्होंने ज़मीनी स्तर पर रहकर किसानों के दुःख दर्द को समझ और प्रदर्शन के ज़रिये अपनी आवाज़ केंद्र तक पहुंचाई।
विभिन्न मांगों को लेकर अखिल भारतीय किसान सभा की तरफ से निकाला गया किसानों का ये महा-आंदोलन धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं उस शख्स के बारे में जिन्हें किसान आंदोलन का जनक कहा जाता है. भारत में संगठित किसान आंदोलन खड़ा करने का श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को जाता है. दण्डी संन्यासी होने के बावजूद सहजानंद ने रोटी को ही भगवान कहा और किसानों को भगवान से बढ़कर बताया. उन्होंने किसानों को लेकर नारा भी दिया था.
'जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा, अब सो कानून बनायेगा
ये भारतवर्ष उसी का है, अब शासन वहीं चलायेगा'
स्वामी सहजानंद सरस्वती
स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म 22 फरवरी 1889 को हुआ था. बचपन में ही उनकी मां का निधन हो गया था. उनके पिता एक किसान थे. कहते हैं पूत पांव पालने में ही दिखने लगते हैं. स्वामी जी की महानता के गुण बचपन से ही दिखने लगे. प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना शुरू कर दिया. पढ़ाई के दौरान ही उनका मन आध्यात्म में रमने लगा. बचपन में स्वामी जी ये देखकर हैरान थे कि कैसे भोले-भाले लोग नकली धर्माचार्यों से गुरु मंत्र ले रहे हैं. जिसके बाद उनके मन में पहली बार विद्रोह का भाव उठा.
महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ असहयोग आंदोलन बिहार में गति पकड़ी तो सहजानंद उसके केन्द्र में थे। घूम-घूमकर उन्होंने अंग्रेजी राज के खिलाफ लोगों को खड़ा किया। ये वह समय था जब स्वामी जी भारत को समझ रहे थे। इस क्रम में उन्हें एक अजूबा अनुभव हुआ। किसानों की हालत गुलामों से भी बदतर है। युवा संन्यासी का मन एक बार फिर नये संघर्ष की ओर उन्मुख होता है। वे किसानों को लामबंदी करने की मुहिम में जुटे रहे। इस रूप में देखें तो भारत के इतिहास में संगठित किसान आंदोलन खड़ा करने और उसका सफल नेतृत्व करने का
एक मात्र श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को जाता है। कांग्रेस में रहते हुए स्वामी जी ने किसानों को जमींदारों के शोषण और आतंक से मुक्तकराने का अभियान जारी रखा। उनकी बढ़ती सक्रियता से घबराकर अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया। कारावास के दौरान गांधीजी के कांग्रेसी चेलों की सुविधाभोगी प्रवृति को देखकर स्वामीजी हैरान हो गए। स्वभाव से हीं विद्रोही स्वामीजी का कांग्रेस से मोह भंग होना शुरू हो गया। जब1934 में बिहार प्रलयंकारी भूकंप से तबाह हुआ तब स्वामीजी ने बढ़-चढ़कर राहत और पुनर्वास के काम में भाग लिया। विद्रोही सहजानंद ने किसानों को हक दिलाने के लिए संघर्ष को हीं जीवन का लक्ष्य घोषित कर दिया।
स्वामीजी के जीवन का दूसरा अध्याय तब शुरू होता है, जब 5 दिसम्बर 1920 को पटना में कांग्रेस नेता मौलाना मजहरुल हक के आवास पर महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात होती है। गांधीजी के अनुरोध पर वे कांग्रेस में शामिल होते हैं। साल के भीतर हीं वे ग़ाज़ीपुर ज़िला कांग्रेस का अध्यक्ष चुने गये और कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में शामिल हुए। अगले साल उनकी गिरफ्तारी और एक साल की कैद हुई।
जब 1934 में बिहार प्रलयंकारी भूकंप से तबाह हुआ तब स्वामी जी ने बढ़-चढ़कर राहत और पुनर्वास के काम में भाग लिया. किसानों को हक दिलाने के लिए संघर्ष को अपना लक्ष्य मान लिया था. जिसके बाद उन्होंने नारा दिया.
'कैसे लोगे मालगुजारी, लठ हमारा जिन्दाबाद'
बाद में यहीं नारा किसान आंदोलन का सबसे प्रिय नारा बन गया.
वे कहते थे- 'अधिकार हम लड़ कर लेंगे और जमींदारी का खात्मा करके रहेंगे'
उनका भाषण किसानों पर गहरा असर छोड़ता था. काफी कम समय में किसान आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया. उस दौरान बड़ी संख्या में लोग स्वामी जी को सुनने आते थे. 1936 में कांग्रेस के लखनऊ सम्मेलन में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना हुई जिसमें उन्हें पहला अध्यक्ष चुना गया.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक स्वामी सहजानंद के नेतृत्व में किसान रैलियों में जुटने वाली भीड़ कांग्रेस की सभाओं में आने वाली भीड़ से कई गुना ज्यादा होती थी. उन्होंने किसान आंदोलन के संचालन के लिए पटना के समीप बिहटा में आश्रम भी स्थापित किया. वो सीताराम आश्रम आज भी है.
उस दौरान सहजानन्द किसानों को शोषण मुक्त और जमींदारी प्रथा से आजादी दिलाना चाहते थे. किसाने के हक के लिए लड़ाई लड़ते हुए स्वामी जी 26 जून,1950 का निधन हो गया.
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